
बिलासपुर केन्द्रीय जेल में कैदियों ने किया पुष्प की अभिलाषा का सामूहिक पाठ, उप मुख्यमंत्री अरूण साव रहे शामिल**

बिलासपुर, 28 अगस्त 2025।
स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, प्रख्यात साहित्यकार और ‘एक भारतीय आत्मा’ के नाम से मशहूर स्वर्गीय माखनलाल चतुर्वेदी की कालजयी रचना *“पुष्प की अभिलाषा”* का पाठ गुरुवार को केन्द्रीय जेल बिलासपुर में किया गया। इस अवसर पर उप मुख्यमंत्री अरूण साव मुख्य अतिथि के रूप में शामिल हुए। जेल प्रशासन और एक निजी समाचार पत्र संस्थान के सहयोग से आयोजित इस विशेष समारोह में बड़ी संख्या में कैदी, साहित्यकार और जनप्रतिनिधि उपस्थित रहे।

कार्यक्रम की शुरुआत चतुर्वेदी के छायाचित्र पर पुष्पांजलि अर्पित कर की गई। उप मुख्यमंत्री साव ने कहा कि यह ऐतिहासिक अवसर है जब हम बिलासपुर जेल में बैठकर उस महान साहित्यकार को याद कर रहे हैं, जिन्होंने इसी जेल में रहकर 18 फरवरी 1922 को इस कालजयी कविता की रचना की थी। साव ने कहा – *“पुष्प की अभिलाषा सिर्फ एक कविता नहीं, बल्कि बलिदान और त्याग की अद्वितीय प्रेरणा है। एक फूल की यह इच्छा कि वह देवता या सम्राट के सिर पर न सजकर सेनानियों के पैरों तले कुचला जाए, देश के लिए सर्वोच्च समर्पण का प्रतीक है।”*

उन्होंने आगे कहा कि स्वतंत्रता संग्राम के दौरान साहित्य ने जनजागरण की महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। माखनलाल चतुर्वेदी की यह कविता आज भी हर भारतीय को देश और समाज के लिए निस्वार्थ भाव से काम करने के लिए प्रेरित करती है। उप मुख्यमंत्री ने कहा कि यह रचना छत्तीसगढ़ और पूरे देश की अमूल्य धरोहर है।

समारोह में विधायक सुशांत शुक्ला, वरिष्ठ साहित्यकार सतीश जायसवाल, कवि एवं संपादक देवेंद्र कुमार भी मौजूद रहे। वक्ताओं ने कहा कि *पुष्प की अभिलाषा* भारतीय साहित्य का वह अनमोल अध्याय है जो देशभक्ति की भावना को पीढ़ी दर पीढ़ी संचारित करता रहेगा। कैदियों द्वारा कविता का सामूहिक पाठ कराना इस दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है कि इससे उनमें समाज और राष्ट्र के प्रति सकारात्मक सोच जागृत होती है।

जेल अधीक्षक खोमेश मंडावी ने बताया कि माखनलाल चतुर्वेदी 5 जुलाई 1921 से 1 मार्च 1922 तक यानी 7 माह 27 दिन बिलासपुर केन्द्रीय जेल में निरुद्ध रहे। यहीं रहते हुए उन्होंने यह अमर काव्य रचा था, जो बाद में स्वतंत्रता सेनानियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बना। आजाद भारत में उनके योगदान को मान्यता देते हुए उन्हें देश का प्रथम साहित्य अकादमी पुरस्कार भी प्रदान किया गया।
साहित्यकारों और जनप्रतिनिधियों ने भी अपने विचार व्यक्त किए और कहा कि जेल जैसे वातावरण में इस तरह का आयोजन न सिर्फ कैदियों के लिए आत्मिक शांति और प्रेरणा का स्रोत है, बल्कि समाज को भी यह संदेश देता है कि साहित्य और संस्कृति से बड़ा कोई शस्त्र नहीं है।
समारोह में दीपक सिंह और मोहित जायसवाल की भी उपस्थिति रही। कार्यक्रम का संचालन जेल प्रशासन के अधिकारियों ने किया और अंत में आभार प्रदर्शन जेल अधीक्षक खोमेश मंडावी ने किया।
यह आयोजन बिलासपुर की उस गौरवशाली स्मृति को पुनर्जीवित करता है जब साहित्य और स्वतंत्रता संग्राम का संगम इसी धरती पर हुआ था। *पुष्प की अभिलाषा* का संदेश आने वाली पीढ़ियों को सदैव देशभक्ति, समर्पण और बलिदान की प्रेरणा देता रहेगा।